बांझपन के इलाज को बीमा कवर के तहत लाने की मांग

बांझपन के इलाज को बीमा कवर के तहत लाने की मांग

देश भर में बांझपन के बढ़ते मामले को देखते हुए स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने स्वास्थ्य बीमा योजनाओं में बांझपन के इलाज को शामिल करने की मांग की है ताकि ऐसे लोगों के आर्थिक बोझ को कुछ कम किया जा सके।

विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा समय में सरकारी या निजी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं में बांझपन का इलाज या प्रजनन प्रक्रिया और उपचार शामिल नहीं है।

बेंगलुरु के एक मेडिकल टेक्नोलॉजी कंपनी के अध्ययन के अनुसार देश में दो करोड़ 75 लाख ऐसे दंपती हैं जो बांझपन के शिकार हैं तथा उन्हें बच्चे की चाहत है। 2020 तक इस आंकड़े में 10 फीसदी और इजाफा होने का अनुमान है।

नर्चर आईवीएफ सेंटर की आईवीएफ एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ अर्चना धवन बजाज कहती हैं कि स्वास्थ्य बीमा योजना अगर सभी प्रजनन प्रक्रिया, उपचार और अन्य देख-रेख का कवर देता है तो यह प्रभावित दंपत्तियों के लिए वरदान साबित होगा जिनके पास उन्नत इलाज कराने की आर्थिक क्षमता नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘इससे बांझपन से ग्रसित दंपत्तियों को आईवीएफ उपचार कराने में मदद मिलेगी। यह उपचार प्राकृतिक रूप से गर्भ धारण करने में जिन लोगों को दिक्कत आती है उनके लिए वरदान बन कर आया है।’ 

अर्चना ने कहा, ‘भारत में आईवीएफ की कीमत एक लाख से 2.5 लाख रुपये तक है जो कई दंपत्तियों के लिए मंहगा है। इसलिए वह या तो इलाज छोड़ देते हैं या फिर बच्चे की चाहत में कर्ज लेते हैं। हमलोगों को आर्थिक और शारीरिक खतरे को कम करने की जरूरत है। हालांकि, आर्थिक खतरों को कम करने में बीमा बड़ा मददगार साबित हो सकता है।’ 

पूर्वी दिल्‍ली के के.जे. आईवीएफ सेंटर के संचालक डॉक्‍टर कुलदीप जैन कहते हैं कि स्वास्थ्य बीमा योजनाओं में केवल मातृत्व के खर्चे शामिल हैं और इसमें आईवीएफ का उपचार नहीं है। जैन ने कहा कि 10 से 15 फीसदी विवाहित जोड़े बांझपन से प्रभावित हैं। उन्होंने बताया कि हालांकि, इनमें से कुछ ही उपचार के लिए आगे आते हैं।

मुंबई के आईवीएफ विशेषज्ञ डॉक्‍टर ऋषिकेश पई कहते हैं कि अभी केवल एक प्रतिशत बांझ दंपत्ति किसी प्रकार का इलाज कराने के लिए आते हैं और इसका बड़ा कारण बीमा कवर में इसका शामिल नहीं होना है।

विशेषज्ञों के अनुसार बांझपन का इलाज जटिल है इसलिए इसके व्यापक बीमा कवरेज की आवश्यकता है।

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